युगबोध – ‘कोई न डराये हमें कुर्सी के गुमान से’ – Hariom Pawar

युगबोध – Hariom Pawar

‘कोई न डराये हमें कुर्सी के गुमान से’
मेरा गीत चाँद है ना चाँदनी
न किसी के प्यार की है रागिनी
हँसी भी नहीं है माफ कीजिये
खुशी भी नहीं है माफ कीजिये
शब्द-चित्र हूँ मैं वर्तमान का
आइना हूँ चोट के निशान का
मैं धधकते आज की जुबान हूँ
मरते लोकतंत्र का बयान हूँ
कोई न डराये हमें कुर्सी के गुमान से
और कोइ खेले न कलम के स्वाभिमान से
हम पसीने की कसौटियों के भोजपत्र हैं
आँसू-वेदना के शिला-लेखों के चरित्र हैं
हम गरीबों के घरों के आँसुओं की आग हैं
आँधियों के गाँव मे जले हुए चिराग हैं
किसी राजा या रानी के डमरू नहीं हैं हम
दरबारों की नर्तकी के घूँघरू नहीं हैं हम
सत्ताधीशों की तुला के बट्टे भी नहीं हैं हम
कोठों की तवायफों के दुपट्टे भी नहीं हैं हम
अग्निवंश की परम्परा की हम मशाल हैं
हम श्रमिक के हाथ मे उठी हुई कुदाल हैं
ये तुम्हारी कुर्सियाँ टिकाऊ नहीं हैं कभी
औ हमारी लेखनी बिकाऊ नहीं है कभी।
डॉ. हरिओम पंवार

Web Title: Yugbodh – ‘Let no one scare us with the pride of a chair’ – hariom pawar

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