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इसके लिए वो उर्दू शायरी का सहारा लेते हैं. कुछ लोग एक दूसरे से प्यार मोहब्बत का इज़हार करने या रूठों के मनाने के लिए शायरी का इस्तेमाल करते हैं.
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हालांकि उर्दू के पढ़ने और लिखने वालों की तादाद में दिन-ब-दिन कमी होती जा रही लेकिन इस भाषा के चाहने वालों की तादादा में मुसलसल इज़ाफा होता जा रहा है.
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जिससे भी उर्दू के बारे में पूछो तो वो इस भाषा को सीखना चाहता है. क्योंकि तहज़ीब की ABCD सिखाने वाली इस जबान की बात अलग ही है.
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इसीलिए शायर अहमद वसी ने लिखा,"वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए, ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए."
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं मिर्ज़ा गालिब
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पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ आरज़ू लखनवी
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जिससे पूछें तेरे बारे में यही कहता है खूबसूरत है वफादार नहीं हो सकता इक मोहब्बत तो कई बार भी हो सकती है
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एक ही शख्स कई बार नहीं हो सकता वैसे तो इश्क का होना ही बहुत मुश्किल हो भी जाए तो लगातार नहीं हो सकता अब्बास ताबिश
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क़ातिल ने किस सफ़ाई से धोई है आस्तीं उस को ख़बर नहीं कि लहू बोलता भी है इक़बाल अज़ीम
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करे है अदावत भी वो इस अदा से लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है कलीम आजिज़
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तुम तो हर बात पे तलवार उठा लेते हो शोख़ नजरों से भी कुछ काम लिए जाते हैं शमशीर ग़ाज़ी
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दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं हफ़ीज़ जालंधरी
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बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं लगेगा, लगने लगा है, मगर लगेगा नहीं उमैर नज्मी
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ये एक बात समझने में रात हो गई है मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है तहज़ीब हाफी
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मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता तहज़ीब हाफी
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मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में अम्मार इकबाल
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एक ही बात मुझ में अच्छी है और मैं बस वही नहीं करता अम्मार इकबाल
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मुझे याद है अभी तक वो तपिश तेरे लबों की उन्हें जब छुआ था मैंने, मेरे होठ जल गए थे अज्ञात
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