UP में कांग्रेस के माहौल बनाने से समाजवादी का घाटा, BJP का कुछ नहीं जाता, जानिए कैसे
लखीमपुर खीरी में हुए बवाल के बाद से कांग्रेस काफी ऐक्टिव नज़र आ रही है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई सालों से पार्टी में जान फूंकने में जुटीं प्रियंका गांधी पहली बार कुछ असर छोड़ती दिख रही हैं। इसके अलावा कांग्रेस सरकार वाले राज्य पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नेता भी इस मुद्दे को लेकर काफी सक्रिय हैं। पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बुधवार को राहुल गांधी के साथ लखीमपुर खीरी पहुंचे थे। कांग्रेस इस मुद्दे पर पूरे देश में ही माहौल बनाने की कोशिश में लगी है। खासतौर पर बीते तीन दशकों से यूपी में नज़रो से ओझल रही कांग्रेस अब कुछ चर्चा में दिख रही है। यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से ज्यादा उसकी चर्चा हो रही है।
भारतीय जनता पार्टी को शायद ही नुकसान होगा
गौरतलब है कि UP में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और कुछ ही महीनों पहले प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस पार्टी में जोश पैदा करने का काम किया है। हालांकि इसके बाद भी अहम सवाल यही बना हुआ है कि कांग्रेस की ओर से बनाया गया यह माहौल वोटों में कितना तब्दील होगा, होगा भी नहीं। दरअसल कांग्रेस पार्टी का संगठन यूपी के लगभग सभी जिलों में बेहद कमजोर है और उसके लिए इस माहौल को वोटों में तब्दील कर पाना आसान नहीं होगा। हालांकि इसके बाद भी पार्टी को कुछ फायदा जरूर होने की उम्मीद है, लेकिन इससे भारतीय जनता पार्टी को शायद ही नुकसान होगा।
वोटों के बंटवारे से भाजपा को फायदा
राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में यदि उभार होता है तो यह भाजपा से ज्यादा समाजवादी पार्टी के लिए चिंता की बात है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का वोट बेस काफी हद तक एक ही है। ऐसे में जिन सीटों पर कांग्रेस मजबूत होगी, वहां वह सपा का ही वोट काटेगी। ऐसी स्थिति में भाजपा को उन सीटों पर फायदा हो सकता है, जहां वह करीबी अंतर से पिछड़ रही हो। सपा और कांग्रेस के बीच वोटों के बंटवारे से भाजपा को फायदा मिल सकता है। बता दें कि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव 2021 में भाजपा का सीधा मुकाबला सपा से ही होने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है।
खुद का जीतना मुश्किल, पर सपा का काम बिगाड़ने को काफी
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। अखिलेश यादव ने समझौते के तहत 100 सीटों पर कांग्रेस को लड़ने का मौका दिया था, लेकिन वह 7 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। इसके चलते अब सपा ने अलग ही लड़ने का फैसला लिया है। लेकिन इस बार कांग्रेस की ताकत में इजाफा होता है तो वह भाजपा से ज्यादा अखिलेश की वोटों में ही सेंध लगाएगी। इसके अलावा कांग्रेस भाजपा के खिलाफ सीधे मुकाबले की स्थिति में खुद भी ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में नहीं है।
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