Chhath Puja 2021 Date: सूर्यदेव की आराधना और छठी मैय्या की पूजा का पर्व बुधवार को नहाए खाए से शुरू हो गया। पहला दिन नहाए खाए का होता है, जिसमेंं घर की साफ सफाई की जाती है, व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। शाम को पूजा के बाद शाकाहारी भोजन बनाया जाता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है। दूसरे दिन खरना होता है और इसके अगले दिन छठी पर शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
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छठ पूजा की सही तारीख | Chhath Puja 2021 Date
हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है. छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है. यह साल में दो बार पड़ती है. एक चैत्र मास में और दूसरा कार्तिक मास में. कार्तिक मास की छठ पूजा का पावन पर्व दिवाली के 6 दिन बाद बुधवार, 10 नवंबर 2021 को मनाया जायेगा. यह पर्व चार दिनों तक बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है. इस बार कार्तिक मास का छठ पर्व 8 नवंबर से 12 नवंबर तक है. आइये जानें व्रत –उपवास के नियम.

नहाय- खाय
छठ पर्व का प्रारंभ 8 नवंबर 2021 को नहाय- खाय के साथ किया जाएगा. इस दिन पूरे घर की साफ़ सफाई करके स्नान आदि किया जाता है. इसके बाद सूर्य देव को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प किया जाता है. व्रती को इस दिन चने की सब्जी, चावल, साग आदि खाना चाहिए.
क्या है नहाय-खाय:
इस दिन जो लोग व्रत करते हैं वो स्नानादि के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इसके बाद ही वो छठी मैया का व्रत करते हैं। इस दिन व्रत से पूर्व नहाने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करना ही नहाय-खाय कहलाता है। मुख्यतौर पर इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति लौकी की सब्जी और चने की दाल ग्रहण करता है।
खरना | खरना कब है?
छठ के दूसरे दिन को खरना कहते हैं. इस दिन व्रती को पूरे दिन व्रत रखना होगा. शाम को व्रती महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर गुड़वाली खीर का प्रसाद बनाएंगी. सूर्य देव की पूजा करने के बाद सभी व्रती यह प्रसाद ग्रहण करेंगे. इसके बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. खरना एक प्रकार से शुद्धिकरण की प्रकिया है. खरना के दिन प्रसाद के रूप में गुड़ और चावल की खीर (Kheer) बनाई जाती है. इसके अलावा पूड़िया, ठेकुआ (Thekua), खजूर बनाया जाता है.
सूर्य को अर्घ्य देना
छठ महोत्सव के आखिरी यानी चौथे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इसी के साथ नहाय खाय से प्रारंभ हुए व्रत का समापन हो जाता है। व्रत के पारण के दिन उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। हर वर्ष की भांति इस बार में लोगों में इस पर्व को मनाने को लेकर काफी उत्साह है लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते लोग बाहर निकलते समय सावधानी भी बरत रहे हैं। इस विशेष पर्व के लिए बड़ी संख्या में लोग समुद्र, नदियों और सरोवरों के किनारे पर इकट्ठा होते हैं। छठ पर्व के समापन के अवसर पर सूर्य को जल समर्पित करने के साथ पूजन सामग्री समर्पित की जाती है। व्रत को समाप्त करने को पारण कहा जाता है। सूर्य की लालीमा आसमान में छाते ही श्रद्धालु सूर्य तो अर्घ्य देना प्रारंभ कर देते हैं। और सूर्यदेव से सुख-संपत्ति, आरोग्य और धन-संपदा की कामना के साथ अपने घर को प्रस्थान कर जाते हैं।
ऐसे करें भगवान सूर्य की आराधना
Chhath Puja Surya Arghya छठ पूजा व्रत का तीसरा दिन कार्तिक मास की षष्ठी को पड़ता है। इसमें शाम के समय व्रतधारी किसी नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य देव को दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है।

छठ महोत्सव के आखिरी यानी चौथे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इसी के साथ नहाय खाय से प्रारंभ हुए व्रत का समापन हो जाता है। व्रत के पारण के दिन उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। हर वर्ष की भांति इस बार में लोगों में इस पर्व को मनाने को लेकर काफी उत्साह है लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते लोग बाहर निकलते समय सावधानी भी बरत रहे हैं। इस विशेष पर्व के लिए बड़ी संख्या में लोग समुद्र, नदियों और सरोवरों के किनारे पर इकट्ठा होते हैं। छठ पर्व के समापन के अवसर पर सूर्य को जल समर्पित करने के साथ पूजन सामग्री समर्पित की जाती है। व्रत को समाप्त करने को पारण कहा जाता है। सूर्य की लालीमा आसमान में छाते ही श्रद्धालु सूर्य तो अर्घ्य देना प्रारंभ कर देते हैं। और सूर्यदेव से सुख-संपत्ति, आरोग्य और धन-संपदा की कामना के साथ अपने घर को प्रस्थान कर जाते हैं।
- Date: Wednesday, 10 November, 2021
- Significance: To thank Sun for bestowing the bounties of life on earth and fulfilling particular wishes
- Observed by: Indians and Nepalese > Magahi people; Maithils; Bhojpuri people
- Also called: Chhaith; Chhath Parva; Chhath Puja; Dala Chhath; Dala Puja; Surya Shashthi
ऐसे करें भगवान सूर्य की आराधना
छठ महोत्सव के चौथे दिन सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ के लिए बनाया गया विशेष पकवान ठेकुआ को वितरित किया जाता है और उसको व्रती और परिवारजन ग्रहण करते है। छठ महोत्सव के समापन के अवसर पर छठी मैया की पूजा की जाती है। इस अवसर पर छठी मैया से जिन दंपत्तियों को संतान नहीं है वो संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। जिनके बच्चे है वो अपने बच्चों की उन्नति, आरोग्य और लंबी उम्र की कामना करते हैं। छठ व्रत के समापन अवसर पर छठी मैया और सूर्य देव से व्रत की सफलता की कामना की जाती है। छठी देवी को नन्हे-मुन्ने बच्चों की अधिष्ठात्री देवी माना जाता हैं। संतान की अभिलाषा रखने वाले दंपत्ति को देवी संतान सुख देती है। संतान को दीर्घायु होने का रक्षाकवच पहनाती है। बच्चों की रक्षा करना छठी मैया का परम धर्म है। मान्यता है कि मूल प्रकृति के छठे अंश से इनका प्राकट्य हुआ है इसलिए इनका नामकरण छठी मैया हुआ।
छठी मैया ब्रह्मा जी की मानसपुत्री और कार्तिकेय की प्राणप्रिया है। छठी मैया को देवसेना के नाम से भी जाना जाता हैं। शास्त्रों में इनको विष्णुमाया और बालदा यानी पुत्र देने वाली भी कहा गया है। छठी मैया की सवारी बिल्ली है। इनकी गोद में एक बच्चा है। शास्त्रों में मान्यता है कि जिन दंपत्ति को संतान प्राप्ति में बाधा आती है उनको छठ स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से संतान की प्राप्ति होती है।
नदी किनारे संध्या को देते हैं अर्घ्य
छठ पूजा व्रत का तीसरा दिन कार्तिक मास की षष्ठी को पड़ता है। इसमें शाम के समय व्रतधारी किसी नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य देव को दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है। एक बांस की टोकरी में मैदे से बना ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्नाा, मूली व अन्य सब्जियों और फलों को रखा जाता है, इसे सूप कहते हैं। इस प्रसाद को अर्घ्य के बाद सूर्य देव और छठी माईं को अर्पण किया जाता है।
कौन हैं छठ माता और कैसे हुई उत्पत्ति?
छठ माता को सूर्य देव की बहन बताया जाता है, लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ माता भगवान की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। अपने परिचय में वे कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्ना हुई हैं यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है।
संतान प्राप्ति की कामना करने वाले विधिवत पूजा करें, तो उनकी मनोकामना पूरी होती है। यह पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को करने का विधान बताया गया है। पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के बाद माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है।
छठ पूजा की कथाएं
लोक कथाओं के अनुसार छठ पूजा का उल्लेख राम के काल में भी दिखाई देता है। एक मान्यता के अनुसार लंका में विजय प्राप्त करने के बाद श्री राम और माता सीता ने छठ पूजा की थी। उन्होंने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को व्रत रखा था। इसमें उन्होंने सूर्य देव की पूजा की थी।
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- Web Title: Chhath Puja 2021 Date : When Chhath Puja? Know the exact date, worship method and importance