Bhadrakali Mata : अंग्रेज भी करते थे भद्रकाली माता की पूजा, महामारी का प्रकोप हो जाता था समाप्त

महाभारत कालीन ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर से सैकड़ों कहानियां जुड़ी हैं। कहा जाता है कि अंग्रेज भी यहां पर माता की पूजा-अर्चना किया करते थे।

महाभारत कालीन ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर से कई प्राचीन रोचक तथ्य जुड़े हुए हैं। इन्हीं में से एक है मां भद्रकाली (Bhadrakali Mata) प्राचीन मंदिर। यहां प्राचीन समय से ही मां पिंडी स्वरूप में मौजूद हैं। कहा जाता है कि अंग्रेज भी यहां पर माता की पूजा अर्चना किया करते थे। वन आरक्षित क्षेत्र में मौजूद प्राचीन मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है। माघ और आषाढ़ महीने में यहां प्रत्येक सोमवार को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

वर्तमान समय में इस मंदिर को मां भद्रकाली प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह विकासखंड हस्तिनापुर के अकबरपुर इच्छाबाद गांव के वन आरक्षित क्षेत्र के मध्य गंगनहर किनारे स्थित है। माघ और आषाढ़ के महीने में देश के कोने-कोने से यहां पर लाखों श्रद्धालु प्रत्येक सोमवार को माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार 1942 में मवाना निवासी डॉ. रघुनंदन गोयल ने कराया था, जिन्होंने यहां एक छोटा सा मठ बनाया। 80 वर्षों से लगातार यहां श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी है। श्रद्धालु यहां आकर माता से मन्नत मांगते हैं। नवरात्रों में यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

मां भद्रकाली सेवा संस्था के अध्यक्ष अकबरपुर इच्छाबाद निवासी महकार सिंह ने बताया कि मां भद्रकाली प्राचीन मंदिर का इतिहास 200 वर्ष पुराना है। वह बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि वन आरक्षित क्षेत्र के घने जंगल में गांव वाले गाय चराया करते थे, जिनमें से एक गाय जंगल में हर रोज उसी स्थान पर आकर रुक जाती थी। उसके थन से स्वयं ही दूध निकल जाता था और पिंडी पर चढ़ जाता था। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। एक दिन चरावाह की नजर इस पर पड़ी। सैकड़ों ग्रामीणों ने मौके पर जाकर देखा तो वहां पर मां भद्रकाली की एक प्राचीन पिंडी दिखी। ग्रामीणों ने पिंडी की पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

पास ही के गांव लोगो ने भी बताया कि 1916-17 में अंग्रेजी शासन के दौरान अंग्रेज जंगल में शिकार के लिए आया करते थे। वह भी माता के चमत्कार देखकर उनके भक्त बन गए और पास ही में उन्होंने एक बंगला बनाया, जहां से वह माता की पूजा अर्चना करने के बाद ही जंगल में शिकार पर जाते थे।

लोग कहते है कि यहां पर जब माता की प्राकृतिक पिंडी लोगों को दिखाई दी थी तो उस समय गाय यहां पर स्वयं दूध चढ़ाती थी। इसके बाद ग्रामीणों ने भी दूध और उससे बने व्यंजनों का प्रसाद चढ़ाना शुरू कर दिया।

करीब 50 वर्ष पूर्व इतनी भयंकर महामारी गांव में फैली थी कि पशुओं से लेकर इंसान तक सुरक्षित नहीं थे। देखते ही देखते मौत हो जाती थी। इन गंभीर बीमारियों से बचने के लिए लोगों ने माता से मन्नत मांगी और प्रसाद चढ़ाया, जिससे धीरे-धीरे महामारी का प्रकोप समाप्त होता चला गया। आज सब क्षेत्र में खुशहाल हैं, जो कि भद्रकाली माता का आशीर्वाद है।

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